Swashta sahayata mitra

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स्वच्छता उद्यमी योजना

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"स्वच्छता उद्यमी योजना - स्वच्छता से सम्पन्नता की ओर"
 
‘स्वच्छता उद्यमी योजना’ भुगतान और उपयोग आधारित समुदाय शौचालयों के सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड में निर्माण, संचालन और रखरखाव एवं स्वच्छता से संबंधित वाहनों की खरीद और संचालन हेतु है। 
योजना का शुभारंभ 2 अक्तूबर, 2014 को महात्मा गांधी जी के जन्म दिवस पर माननीय राज्य मंत्री, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, श्री सुदर्शन भगत जी द्वारा किया गया।
इस योजना के दो उददे्श्य जोकि स्वच्छता एवं सफाई कर्मचारियों एवं मुक्त मैनअुल स्केंवेंजरों को जीवनयापन प्रदान करना एवं माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा आरम्भ ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के समग्र उद्देश्य को पूरा करना है।
 
 
मुख्य विशेषताएं

 
क्र.सं. विषय “स्वच्छता उद्यमी योजना”
भुगतान और उपयोग आधारित समुदाय शौचालयों के सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड में निर्माणसंचालन और रखरखाव स्वच्छता से संबंधित वाहनों की खरीद और संचालन
1.   उददे्श्य i) परिवारों को समुदाय शौचालयों की आसान पहुंच (जिनके पास अपने घरों में किसी भी तरह की सुविधा नहीं है) और उच्च जनसंख्या के सार्वजनिक स्थान जैसे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों, बाजारों आदि में।
ii)सुविधाओं का उचित रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए जिन्हें उद्यमियों द्वारा बनाया गया हो एवं इस उद्यम में जिनकी हिस्सेदारी हो।      
iii)जिससे मैला ढ़ोने की आवश्यकता नहीं रहेगी।
i) कम उपयोग की गई क्षमता के दोहन हेतु उपयुक्त आधारभूत ढांचे का निर्माण।
ii) सफाई कर्मचारियों/मैनुअल स्केवेंजरों के लिए रोजगार अवसरों का सृजन ।
iii) सफाई कर्मचारियों/मैनुअल स्केवेंजरों के लिए रोजगार अवसरों का सृजन
2.      पात्रता प्रतिष्ठित संगठनों के सहयोग से राज्य माध्यम अभिकरणों (एससीएज) के माध्यम से व्यक्तिगत लाभार्थी, स्वयं सहायता समूह । मैनुअल स्केंवेंजर/सफाई कर्मचारी
3.            ऋण की मात्रा   10 सीटों वाले शौचालय की एक इकाई की प्रतिष्ठित संगठनों के सहयोग से स्थापना के लिए व्यक्तिगत लाभार्थी, स्वयं सहायता समूह को अधिकतम राशि रू.25 लाख (राशि रू.25 लाख रुपए केवल)। रू. 15,00,000/- तक (व्यक्तिगत/स्वंय सहायता  समूह/संयुक्त सहायता समूह/स्वच्छता कर्मियों के लिए सहकारी समूह )

रू. 40,00,000/- तक (स्वंय सहायता समूह/ संयुक्त सहायता समूह/स्वच्छता कर्मियों के लिए सहकारी समूह) 

4.    ब्याज दर i) 4% प्रतिवर्ष से अधिक नहीं।
ii)महिला लाभार्थियों को ब्याज में 1% की छूट। 
iii) समय पर भुगतान करने वाले लाभार्थियों को 0.5%की छूट दी जाएगी।
i)  4% प्रतिवर्ष से अधिक नहीं।
ii) महिला लाभार्थियों को ब्याज में 1% की छूट।
iii) समय पर भुगतान करने वाले लाभार्थियों को 0.5% की छूट दी जाएगी।
5.            भुगतान अवधि 10 वर्ष तक  10 वर्ष तक 
6.    विलम्बकाल 6 माह की क्रियान्वयन अवधि के अतिरिक्त 6 माह। 3 माह की क्रियान्वयन अवधि के अतिरिक्त 6 माह।
7. सब्सिडी अधिकतम सब्सिडी रू.3.25 लाख, यदि मैनुअल स्केवेंजरों के पुर्नवास हेतु स्वरोजगार योजना (एसआरएमएस) के तहत रोजगार निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अनुसार मैनुअल स्केवेंजर हो। अधिकतम सब्सिडी रू.3.25 लाख, यदि मैनुअल स्केवेंजरों के पुर्नवास हेतु स्वरोजगार योजना (एसआरएमएस) के तहत रोजगार निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अनुसार मैनुअल स्केवेंजर हो।

  स्वच्छता के लिए जागरूकता

 

स्वच्छता , सुरक्षा , और सफाई , शौचालय संग लाई !!!

खुले में शौच जाने से महिलाओं में आत्म सम्मान की भावना कम हो जाती है और असुरक्षा की भावना उत्पन होने लगती है। गाँवों में बलात्कार होने का एक मुख्य कारण खुले में शौच जाना  भी है।

खुले में शौच जाने से प्रदूषण होता है, और साथ ही साथ इससे वातावरण भी अस्वस्थ होता है। जैसे की जिस तालाब में हम शौच के बाद हाथ धोते है , वही पानी पीने के प्रयोग में लाया जाता है, जिससे की टाइफाइड और डाइरिया होने की सम्भावना होती है।

इसके लिए सरकार ने अपने कदम आगे बढ़ाये है और हर घर में शौच बनाने में मदद कर रही है, और इसकी पूरी लागत सरकार के द्वारा निःशुल्क उपलब्ध करायी जाती है।

स्त्रोत: पत्र सूचना कार्यालय

*स्वच्छ भारत मिशन* की सफ़लता का आधार *स्वच्छ मन और राष्ट्रभक्ति* पर निर्भर करती है। *स्वच्छ मन से स्वस्थ शरीर और स्वस्थ शरीर से सभ्य और स्वच्छ समाज* की प्राप्ति हो सकती है।

स्वच्छता का स्वास्थ्य से घनिष्ट सम्बन्ध है। आरोग्य को नष्ट करने के जितने भी कारण हैं, उनमें गन्दगी प्रमुख है॥ बीमारियाँ गन्दगी में ही पलती हैं। जहाँ कूड़े-कचरे के ढेर जमा रहते हैं, मल-मूत्र सड़ता है, नालियों में कीचड़ भरी रहती है, सीलन और सड़न बनी रहती है, वहीं मक्खी, पिस्सू, खटमल जैसे बीमारियाँ उत्पन्न करने वाले कीड़े उत्पन्न होते हैं। उन्हें मारने की दवायें छिड़कना तब तक बेकार है, जब तक गन्दगी को हटाया न जाय। दवा आदि से इन्हें मारा जाय तो भी क्या हुआ। पैदावार न रुके तो अगले दिनों वे उतने ही और पैदा हो जाते हैं, जितने मारे या हटाये गये थे। कहना न होगा कि हैजा, मलेरिया, दस्त, पेट के कीड़े, चेचक, खुजली, रक्त-विकार जैसे कितने ही रोग इन मक्खी, मच्छर जैसे कीड़ों से ही फैलते हैं। मलेरिया का विष मच्छर फैलाते हैं, मक्खियाँ हैजा जैसी संक्रामक बीमारी की अग्रदूत हैं। प्लेग फैलाने में पिस्सुओं का सबसे बड़ा हाथ रहता है। खटमल खून पीते ही नहीं वरन् रक्त को विषैला भी करते हैं। इन कीड़ों के द्वारा पग-पग पर जो कष्ट होता है, सुविधा और बेचैनी उठानी पड़ती है, उसका कष्ट तो अलग ही दुःख देता रहता है।

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