Paryavaran Sahayata Mitra
Pollution is the introduction of contaminants into the natural environment that cause adverse change.[1] Pollution can take the form of chemical substances or energy, such as noise, heat or light. Pollutants, the components of pollution, can be either foreign substances/energies or naturally occurring contaminants. Pollution is often classed as point source or nonpoint source pollution. In 2015, pollution killed 9 million people in the world.[2][3] Major forms of pollution include: Air pollution, light pollution, littering, noise pollution, plastic pollution, soil contamination, radioactive contamination, thermal pollution, visual pollution, water pollution. अभी मार्च 2014 में संयुक्त राष्ट्र की एक वैज्ञानिक समिति के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का प्रदूषण कम नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव बेकाबू हो सकता है। ग्रीनहाउस गैसें धरती की गर्मी को वायुमंडल में अवरुद्ध कर लेती हैं, जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है और ऋतुओं में बदलाव देखे जा रहे हैं। यह रिपोर्ट 2610 पृष्ठ की है। पचौरी ने बताया, समय की पुकार है कि अब कार्रवाई की जाये। पचौरी ने कहा कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया, तो हालात बेकाबू हो जाएँगे। नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों के दल द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोप में जानलेवा लू, अमेरिका में दावानल, आस्ट्रेलिया में भीषण सूखा और मोजाम्बिक, थाईलैंड और पाकिस्तान में प्रलयकारी बाढ़ जैसी 21 वीं शताब्दी की आपदाओं ने यह दिखा दिया है कि मानवता के लिए मौसम का खतरा कितना बड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अधिक बढ़ा तो खतरा और बढ़ जाएगा। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण, संरक्षण एवं सतत विकास को बढ़ावा देने के लिये पर्यावरण की प्रगति आदि के नियंत्रण के लिये हमारे देश की सरकार की भूमिका काफी आलोचनात्मक है। विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर कार्य करने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर, राष्ट्रीय सरकारों तथा सिविल सोसाइटी द्वारा कई पर्यावरण संबंधी संस्थाएँ एवं संगठन स्थापित किए गए हैं। कोई भी पर्यावरणीय संगठन एक ऐसा संगठन होता है जो पर्यावरण को किसी प्रकार के दुरुपयोग तथा अवक्रमण के खिलाफ सुरक्षित करता है साथ ही ये संगठन पर्यावरण की देखभाल तथा विश्लेषण भी करते हैं एवं इन लक्ष्यों को पाने के लिये प्रकोष्ठ भी बनाते हैं। पर्यावरणीय संगठन सरकारी संगठन हो सकते हैं, गैर सरकारी संगठन हो सकते हैं या एक चैरिटी अथवा ट्रस्ट भी हो सकते हैं। पर्यावरणीय संगठन वैश्विक, राष्ट्रीय या स्थानीय हो सकते हैं। यह पाठ अग्रणीय पर्यावरणीय संगठनों के बारे में सूचना प्रदान करता है। ये संगठन सरकारी हों या सरकार के बाहर के राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण तथा विकास के लिये कार्य करते हैं।Pollution
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पर्यावरण समस्याओं के समाधान हेतु सभी अपना-अपना योगदान दें!
वास्तव में आज मानव और प्रकृति का सह-सम्बन्ध सकारात्मक न होकर विध्वंसात्मक होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में पर्यावरण का प्रदूषण सिर्फ किसी राष्ट्र विशेष की निजी समस्या न होकर एक सार्वभौमिक चिन्ता का विषय बन गया है। पर्यावरण असंतुलन हर प्राणी को प्रभावित करता है। इसलिए पर्यावरण असंतुलन पर अब केवल विचार-विमर्श के लिए बैठकें आयोजित नहीं करना है वरन अब उसके लिए ठोस पहल करने की आवश्यकता है, अन्यथा बदलता जलवायु, गर्माती धरती और पिघलते ग्लेशियर जीवन के अस्तित्व को ही संकट में डाल देंगे। अत: जरूरी हो जाता है कि विश्व का प्रत्येक नागरिक पर्यावरण समस्याओं के समाधान हेतु अपना-अपना योगदान दें।
पर्यावरण असन्तुलन आज वैश्विक चर्चा और चिन्ता का विषय बना हुआ है
अभी पिछले वर्ष उत्तराखण्ड में आई भीषण प्राकृतिक आपदा, जापान के पिछले 140 सालों के इतिहास में आए सब से भीषण 8.9 की तीव्रता वाले भूकम्प की वजह से प्रशांत महासागर में आई सुनामी के साथ ही यूरोप में जानलेवा लू, अमेरिका में दावानल, आस्ट्रेलिया में भीषण सूखा और मोजाम्बिक, थाईलैंड और पाकिस्तान में प्रलयकारी बाढ़ जैसी 21 वीं शताब्दी की आपदाओं ने सारे विश्व का ध्यान इस अत्यन्त ही विनाशकारी समस्या की ओर आकर्षित किया है। कुछ समय पूर्व पर्यावरण विज्ञान के पितामह श्री जेम्स लवलौक ने चेतावनी दी थी कि यदि दुनियाँ के निवासियों ने एकजुट होकर पर्यावरण को बचाने का प्रभावशाली प्रयत्न नहीं किया तो जलवायु में भारी बदलाव के परिणामस्वरूप 21 वीं सदी के अन्त तक छ: अरब व्यक्ति मारे जायेंगे। संसार के एक महान पर्यावरण विशेषज्ञ की इस भविष्यवाणी को मानव जाति को हल्के से नहीं लेना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे भौगोलिक सीमाओं से बंधे हुए नहीं होते हैं
आज जब दक्षिण अमेरिका में जंगल कटते हैं तो उससे भारत का मानसून प्रभावित होता है। इस प्रकार प्रकृति का कहर किसी देश की सीमाओं को नहीं जानती। वह किसी धर्म किसी जाति व किसी देश व उसमें रहने वाले नागरिकों को पहचानती भी नहीं। वास्तव में आज पूरे विश्व के जलवायु में होने वाले परिवर्तन मनुष्यों के द्वारा ही उत्पन्न किये गये हैं। परमात्मा द्वारा मानव को दिया अमूल्य वरदान है पृथ्वी, लेकिन चिरकाल से मानव उसका दोहन कर रहा है। पेड़ों को काटकर, नाभिकीय यंत्रों का परीक्षण कर वह भयंकर जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण फैला रहा है। जिस पृथ्वी का वातावरण कभी पूरे विश्व के लिए वरदान था आज वहीं अभिशाप बनता जा रहा है।
बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय कानून व प्रभावशाली विश्व न्यायालय की आवश्यकता
डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में दिसम्बर, 2010 में आयोजित सम्मेलन में दुनिया भर के 192 देशों से जुटे नेता जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित किसी भी नियम को बनाने में सफल नहीं हुए थे। इस सम्मेलन के तुरन्त बाद आयोजित एक प्रेसकांफ्रेंस में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ब्राउन ने कहा कि ‘यह तो बस एक पहला कदम है, इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने से पहले बहुत से कार्य किये जाने हैं।’ असली दिक्कत यह है कि सार्वभौमिक हित का मसला होते हुए भी यहाँ राष्ट्रीय हितों का विकट टकराव है। हमारा मानना है कि कई दशकों से पर्यावरण बचाने के लिए माथापच्ची कर रही दुनियाँ अब अलग-अलग देशों के कानूनों से ऊब चुकी है। विश्व की कई जानी-मानी हस्तियों का मानना है कि अब अंतर्राष्ट्रीय अदालत बनाने का ही रास्ता बचा है, ताकि हमारी गलतियों की सजा अगली पीढ़ी को न झेलनी पड़े।
पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान
अभी हाल ही में सैन फ्रांसिस्को स्थित गोल्डमैन एनवार्नमेंट फाउंडेशन द्वारा भारत के रमेश अग्रवाल को पर्यावरण के सबसे बड़े पुरस्कार ‘गोल्डमैन प्राइज’ से नवाजा गया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ में अंधाधुंध कोयला खनन से निपटने में ग्रामीणों की मदद ली और एक बड़ी कोयला परियोजना को बंद कराया। रमेश अग्रवाल छत्तीसगढ़ में काम करते हैं और वो लोगों की मदद से एक बड़े प्रस्तावित कोयला खनन को बंद कराने में सफल रहें। उनके साथ इस पुरस्कार को पाने वाले अन्य लोगों में पेरु, रूस, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और अमरीका के 6 पर्यावरण कार्यकर्ता शामिल हैं। इन सभी विजेताओं को प्रत्येक को पौने दो लाख डालर की राशि मिलेगी। इससे पहले ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के क्लाइमेट पैनल के श्री राजेन्द्र पचौरी और अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति श्री अलगोर को शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
प्रकृति से हमें उतना ही लेना चाहिए जितने से हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है
हमारी पूर्व पीढ़ियों ने तो हमारे भविष्य की चिन्ता की और प्रकृति की धरोहर को संजोकर रखा जबकि वर्तमान पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन करने में लगी है। एक बार गाँधीजी ने दातुन मंगवाई। किसी ने नीम की पूरी डाली तोड़कर उन्हें ला दिया, यह देखकर गाँधीजी उस व्यक्ति पर बहुत बिगड़े। उसे डाँटते हुए उन्होंने कहा- ‘जब छोटे से टुकड़े से मेरा काम चल सकता था तो पूरी डाली क्यों तोड़ी? यह न जाने कितने व्यक्तियों के उपयोग में आ सकती थी।’ गाँधीजी की इस फटकार से हम सबको भी सीख लेनी चाहिए। प्रकृति से हमें उतना ही लेना चाहिए जितने से हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है।विश्व का प्रत्येक नागरिक पर्यावरण समस्याओं के समाधान हेतु अपना-अपना योगदान दें
जलवायु परिवर्तन की समस्या पर अभी हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कहा है कि जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर ऐसे बदलाव ला रहा है जिससे मानव जाति पर गम्भीर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने अमेरिका के लोगों से स्वस्थ एवं बेहतर भविष्य के लिए पर्यावरण सुरक्षा का आग्रह किया। वास्तव में आज मानव और प्रकृति का सह-सम्बन्ध सकारात्मक न होकर विध्वंसात्मक होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में पर्यावरण का प्रदूषण सिर्फ किसी राष्ट्र विशेष की निजी समस्या न होकर एक सार्वभौमिक चिन्ता का विषय बन गया है। पर्यावरण असंतुलन हर प्राणी को प्रभावित करता है। इसलिए पर्यावरण असंतुलन पर अब केवल विचार-विमर्श के लिए बैठकें आयोजित नहीं करना है वरन अब उसके लिए ठोस पहल करने की आवश्यकता है, अन्यथा बदलता जलवायु, गर्माती धरती और पिघलते ग्लेशियर जीवन के अस्तित्व को ही संकट में डाल देंगे। अत: जरूरी हो जाता है कि विश्व का प्रत्येक नागरिक पर्यावरण समस्याओं के समाधान हेतु अपना-अपना योगदान दें।
जलवायु परिवर्तन जैसे महाविनाश से बचने के लिए अति शीघ्र विश्व संसद, विश्व सरकार एवं विश्व न्यायालय की आवश्यकता
विश्व भर में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एक मंच पर आकर तत्काल विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय के गठन पर सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाना चाहिए। इस विश्व संसद द्वारा विश्व के 2.4 अरब बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए जो भी नियम व कानून बनाये जाये, उसे विश्व सरकार द्वारा प्रभावी ढंग से लागू किया जाये और यदि इन कानूनों का किसी देश द्वारा उल्लघंन किया जाये तो उस देश को विश्व न्यायालय द्वारा दण्डित करने का प्रावधान पूरी शक्ति के साथ लागू किया जाये। इस प्रकार विश्व के 2.4 अरब बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढिय़ों को जलवायु परिवर्तन जैसे महाविनाश से बचाने के लिए अतिशीघ्र विश्व संसद, विश्व सरकार एवं विश्व न्यायालय का गठन नितान्त आवश्यक है